हर एक रोज़ जिन्दगी तमाशा करती है ,
उम्मीदों की सुबह से बस आशा करती है ,
शाम ए चराग जलाने में निकल जाती है ,
ख्वाबों को आंखों से रात निगल जाती है ,
हासिल कुछ होता नहीं नई ख्वाहिशों से ,
महसूस हो रहा है बंध गया नई बंदिशों से ,
हवा सुकून वाली आज कल चलती नहीं ,
फिजाओं में खुशबू सुकून की मिलती नहीं ,
दरख्तों से यादों का धुआं निकले ही जा रहा ,
नफरत की आग से दिल पिघले ही जा रहा ,
ख्याल शायर का गाल गुलाबों से लगते हैं ,
तुम्हारे सारे सवालात किताबों से लगते हैं ,