उदासी, तूँ, अब मेरे घर से जा
मेरी तन्हां जिंदगी पर हक न जता
कुछ दर्द, आज भी जख्म गहरा रहे
तेरे नाम की दुआई दे, उन्हें भटका रहे
मुमकिन नहीं, सदा तेरी गिरफ्त में रहूँ
कुछ खुशियों को, कैसे दूर रहने को कहूँ ?
कुछ टूटा, तो तेरी सहानुभूति ने दी पनाह
संभल रहा, तो तेरे ठहरने की क्या है, वजह
कुछ रस्में तुम भी तो पहचान, मेरे मेहमान
क्या अच्छा होगा, ठहरना, जब न हो सम्मान
✍️ कमल भंसाली
-Kamal Bhansali