👉दोहा☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
जय गणेश गिरिजासुवन, मंगल मूल सुजान
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान
⛔⛔⛔⛔शिव चालीसा⛔⛔⛔⛔
ओम त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.... ब्रह्मदत्त
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आज का ज्ञान➖ ब्रह्मदत्त
परमात्मा ने आपको
सबसे अलग बनाया है इसलिए,
दूसरो के जैसा बन कर अपनी
वास्तविकता को नष्ट मत करो!!
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|जय गिरिजापति दीनदयाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला ।।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्डल नागफनी के ।
अंग गौर सिर गंग बहाये, मुण्डमाल तन क्षार लगाये ।।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देखि नाग मन मोहे ।
मैना मातु कि हवै दुलारी, बाम अंग सोहत छवि न्यारी ।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी ।
नन्दि गणेश सोहैं तहँ कैसे, सागर मध्य कमल है जैसे ।
कार्तिक और गणराऊ, या छवि की जात
देवन जवहीं जाय पुकारा, तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा ।
किया उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ।
तुरत षडानन आप पठायउ, लव निमेष महँ मारि गिरायउ।
|आप जलंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा ।
दूसरो के जैसा बन कर अपनी
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, सबहिं कृपा करि लीन बचाई।
किया तपहिं भागीरथ भारी, पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी ।।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाही, सेवक स्तुति करत सदाहीं।
वेद नाम महिमा तव गाई, अकथ अनादि भेद नहिं पाई।
प्रकटी उदधि मंधन में ज्वाला, जरत सुरासुर भए विडाला।
कीन्ह दया तह करी सहाई, नीलकंठ तब नाम कहाई ।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा, जीत के लंक विभीशण दीन्हा।
सहस कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहिं त्रिपुरारी ।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई, कमल नैन पूजन चहुं सोई ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर, भये प्रसन्न दिए इच्छित वर।
जय जय जय अनन्त अविनाशी, करत कृपा सबके घटवासी।
दुष्ट सकल निति मोहि सतावै, अमत रही मोहि चैन न आवे
त्राहि-त्राहि में नाथ पुकारों, यहि अवसर मोहि आन उबारों।
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो, संकट ते मोहि आन उबारों।
मातु पिता भाता सब होई, संकट में पूछत नहीं कोई ।
स्वामी एक है आस तुम्हारी, आय हरहु अब संकट भारी ।
धन निर्धन को देत सदा ही, जो कोई जांचे वो फल पाहीं ।
स्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।
शंकर हो संकट के नाशन, विघ्न विनाशन मंगल कारन।
योगी यति मुनि ध्यान लगायें, नारद शारद शीश नवावें ।
नमो नमो जय नमः शिवाय, सुर ब्रह्मादिक पार न पाये ।
जो यह पाठ करे मन लाई, ता पर होत हैं शम्भु सहाई ।।
कनियां जो कोई हो अधिकारी, पाठ करे सो पावन हारी ।
पुत्र हीन कर इच्छा जोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।
पण्डित त्रयोदशी को लावे, ध्यान पूर्वक होम करावे ।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा, तन नहिं ताके रहे कलेशा ।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे, शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ।
जन्म जन्म के पाप नसावे, अन्त धाम शिवपुर में पावे ।
को अयोध्या आस तुम्हारी, जानि सकल दुख हरहु हमारी ।
दोहा
नित्य नेम कर प्रातः ही पाठ करो चालीस, तुम मेरी मनोकामना पूर्ण करो जगदीश ।
मगसर छठि हेमन्त ऋतु, संवत् चौसठजान, अस्तुति-ब्रह्मदत्त कीनोह चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ।।
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़