मौत देखा
आज मैंने मौत को फिर
अपनी आँखों से देखा
हाँ आज फिर एक बुड्ढे को
सड़क किनारे मरते देखा
भीड़ इकट्ठी थी काफी
पर मदद को आया ना कोई आगे
चार बातें कोई सुनाता
तो कोई उसके बुरे कर्मों का फल गिनवाता
हाँ आज फिर एक बुड्ढे को
सड़क किनारे तड़पते देखा
वो मदद की उम्मीद लिए
आँखों को नम किए
चारों तरफ अपनो को खेज रहा था
बहू पास में खड़ी उस पर हँस रही थी
लम्बी-लम्बी बाते करने वाले भी
खूब मौजूद थे वहाँ
पर किसी की औक़ात ना थी
बुड्ढे को हॉस्पिटल पहुँचाने की
हाँ आज फिर एक जिन्दगी को कुर्बान होते देखा
फिर एक बुढ्ढे को सड़क किनारे मरते देखा
हजारों मक्खियां उस पर थी चढ़ी
मानो उससे सैकड़ों सवाल दाग रही हो
मजबूर बेबस बुड्ढा
कौन से कर्म का फल है ये?
मन ही मन भगवान से प्रश्न दाग रहा था
हाँ तड़प-तड़प कर उसने
अपने प्राणों को त्यागा
फिर अगले जन्म मनुष्य ना बनने को ठाना
आज फिर एक बेबस को मरते देखा
सड़क किनारे तड़पते देखा
Swati kumari