❣️प्यार रहा, अमर ❣कमल भंसाली
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सदिया बीती, प्यार रहा अमर
पथिक चलना, ऐसी ही डगर
प्यार ही हो, तेरी असली मंजिल
खुशियों के फूल, खिलेंगे हर पल
खूबसुरती जिस्म की, बदलती रहती
अवधि सांसों की भी, कम होती रहती
प्यार की रंगत, सदा एक जैसी रहती
प्यार से रहो, धड़कने भी यही चाहती
पल का प्यार, स्वाति बन जब चमकता
सच की धवलता से, कीमती बन जाता
रंग बदलते इजहार, आरजूयें करता जाता
पर प्यार का अहसास, कभी नहीं कर पाता
हर रिश्ते में, प्यार का ही बन्धन होता
खून से तो सिर्फ, उसका स्पर्श ही होता
आपसी समझ बन जाता है, जब प्यार
वो, जीवन, अपनी मंजिल करता तैयार
जब तक प्यार और सच, साथ साथ रहते
बगियाँ में, खुशियों के फूल सदा ही खिलते
प्यार को, भगवान से कभी कम नहीं समझना
प्रेम-नभ का, इसे सूर्य और चन्द्रमा ही समझना
प्यार को उजियारा, अहसास को अभय-दान समझना
सच्चे प्रेम को ,अटूट अनमोल, जीवन बन्धन ही समझना
रचियता: कमल भंसाली