यांदे गाव की
मेरे गांव की बगिया भी लहराई थी
आम लीची पपीता केला सारे फल आई थी
उन पेड़ों की उस सर सर में
जाने कैसी बजती शहनाई थी!!
कुछ ओस की गीले बूंदे
मेरी देह पर गिर आई थी
मन भीगी सी तन भीगी सी
मैं भी खूब शर्मा आई थी!!
बाहर खड़े नीम के नीचे
चौकी पर पंचायत सब की जमती थी
ना घर घर में टीवी,ना घर- घर में मोबाइल थी!!
जिससे भी बतिया ना होता
लगती बड़ी लाइन थी
चलो उठो, ना शोर मचाओ
रामायण की बारी थी!!
कोई ना देखे चुपके से सब चलो
आज देखने की फुल तैयारी थी
घर आने पर मार पड़ी
अब अब डांट की बारी थी!!
गांव की कच्ची सड़क
जिनमें बहती पानी थी!
भरी दुपहरी खेल-खेल में
करती बहुत शैतानी थी!!
स्कूल के बाहर चूरन की पुड़िया
मिलती भी क्या निराली थी
क्या नमक वाली इमली
स्वाद चटक वाली थी!!
घर के मीठी चूल्हे पर
खाना पकाती मेरी नानी थी
सोंधी सोंधी खुशबू में
क्या बात निराली थी!!
पास पड़ी मचिया पर कभी
हमने सुनी बहुत कहानी थी
गांव की गलियों में हमने
की बड़ी शैतानी थी!!