Hindi Quote in Poem by Manoj kumar shukla

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सभी विद्वान पाठकों के सामने प्रस्तुत है मेरी एक नई सजल सादर समीक्षा हेतु 🙏🙏🙏

सजल
समांत- ईते
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 16

श्रमिक-रोज शंका में जीते ।
दुख के आँसू खुद ही पीते।।

राह देखता खड़ा सुदामा ,
शासक के बस हुए सुभीते।

फल तो कई फले हैं लेकिन,
खाने को कब मिले पपीते।

अखबारों में छपी योजना,
तंत्र लगाते रहे पलीते।

तन-गरीब ऐसे हैं ढकते,
सुइ-धागों से थिगड़े सीते।

हर गरीब का जीना दूभर,
कैसे उनका जीवन बीते।

इनने पाल रखे हैं सपने।
पर उनके दिल दिखते रीते।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

11जुलाई 2021

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111729676
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