सभी विद्वान पाठकों के सामने प्रस्तुत है मेरी एक नई सजल सादर समीक्षा हेतु 🙏🙏🙏
सजल
समांत- ईते
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 16
श्रमिक-रोज शंका में जीते ।
दुख के आँसू खुद ही पीते।।
राह देखता खड़ा सुदामा ,
शासक के बस हुए सुभीते।
फल तो कई फले हैं लेकिन,
खाने को कब मिले पपीते।
अखबारों में छपी योजना,
तंत्र लगाते रहे पलीते।
तन-गरीब ऐसे हैं ढकते,
सुइ-धागों से थिगड़े सीते।
हर गरीब का जीना दूभर,
कैसे उनका जीवन बीते।
इनने पाल रखे हैं सपने।
पर उनके दिल दिखते रीते।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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11जुलाई 2021