क़यामत का दिन
साम ढलने वाली थी,
सूरज भी डूबने वाला था,
अंधेपन छाँह रहा था,
तारो की रोशनी हो रही थी,
चाँद भी निकलने वाला था,
ठंडी हवा चल रही थी,
मैं वही पर खड़ा सब देख रहा था,
अतर की खुश्बू आ रही थी,
दूर से पायलो की आवाज आ रही थी,
सायद वो आ रही थी मुझसे मिलने।
-Parmar Sadhna