शीर्षक : मदिरालय
अरमानों के मदिरालय में
खब्बाबों के पैमाने
जज्बातों की मदिरा में
गुजर गई तमाम उम्र
फिर, भी फिक्र नहीं करती, जिंदगी
बता, क्या संसारिक नशे में डूब गई ?
है, किसी को जबाब देना
शायद, यह बात तुम भूल गई
कुछ तो ख्याल कर औकात का
लड़खड़ाते पैर तेरे
गुणगान कर रहे, तेरी ताकत का
क्या थी क्या, हो गई
रिश्ते, बन्धनों के अंधेरो में
तूँ, गिरकर बदनाम हो गई
लोग कहते है, किस्से बदनामी के
इज्जत की कमीज पर
नशे में कितने दाग लगा गई
मोह, मौहब्बत, प्यार
दुश्मन है, मेरे यार
नशा जितना भी होता मादक
उतना ही है, घातक
संभल जा, कुछ वक्त के लिए
दोष जमाने को न देना
जमाने को वक्त नहीं, तेरे लिए
मान मेरी बात
पीना है, तो पी,
पर जब जग में तूँ आई
तो, कुछ अपनी
आत्मा के लिये, जी, देकर दुहाई
तोड़ नशे के सारे बन्धन
पकड़ मेरा हाथ
आ, फिर,
एक बार चलते
कोई नए, उज्ज्वल पथ पर
तुम और मैं, साथ, साथ
रचियता ✍कमल भंसाली