सजल
समांत-ईत
पदांत- की
मात्राभार- 19
याद आती है कभी मनमीत की।
बरसात से तरबतर संगीत की ।।
थे क्वाँरे स्वप्न तब मधुमास के,
डोर में जब बंँध गए थे प्रीत की।
भौंरों का गुँजन है मन को भा गया,
पंक्तियांँ तब बन गई थीं गीत की।
प्रेम का है दौर वह बढ़ता गया,
लहर आई थी अचानक शीत की।
अजनबी से चल दिए मुख मोड़कर,
होती थी यह पटकथा अतीत की।
दिल सभी का नेक था, ईमान था,
राह पकड़े थे सदा नवनीत की।
उमर की जब झुर्रियां हैं बढ़ गईं,
जिंदगी को गर्व है अब जीत की।
14 जून 2021
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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