आज मौन दिवस मना रहा है ये मन....
जो उजड़ते जंगलों के,पुकार से विह्वल - विचलित हो कर,
कभी मूकदर्शक देह(समाज)में,खूब शोर किया करता था।
दबाया-कुचला गया,ये तड़पता रहा....
देख दशा मानव की,कुंठित सा हो गया।
चुप्पी साधे,सीमा बांधे,मिली समय की दुश्वारियों को ढो रहा है।
और ये मंद-बधिर इंसां,करनी पर अपनी आज भी रो रहा है।।
नोट👉यह लेख वृक्ष - प्रकृति और मनुष्य से संबंधित है।
विश्व पर्यावरण दिवस....
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