My Motivational Poem..!!!
यारों जब ज़मीर जग रहा
हो तो बंदे को नींद कैसे आए
फ़ानी जहाँ का शोर तो वो
सुने जिसको वह सुनाई देता है
माना आज वक़्त का तक़ाज़ा
हर ज़हनीं दाद का मुन्तज़िर तो है
पर अपने उसूलों का दामन ही
ग़र प्रभु-परस्ती में गुम रहा हो तो
जिस्मानी हर कुवतें भी नूर से
पुर-नूर हो बीमारी से लड़ती हैं
वाइरस भी तो सिर्फ़ उन्हीं पर
हावी होते जो ख़ुद से हारे होते है
वरना जिन जिस्मों की”रुँह”
ज़िंदादिली का सबूत हो वहाँ तो
वाइरसोंका ग़र ऊझुम भी हो तो
भी हर वाइरस दम तोड़ ही देता है
दरअसल वाइरस भी तो प्रभुजी
की जवाबदेही का ग़ुलाम होता हैं
एसे ही किसी की मौत बे-सबब
प्रभु-मर्ज़ी बग़ैर मुमकिन नहीं होती हैं
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