My Spiritual Poem..!!!
हमने बादशाही का हुनर भी
तो फकीरों से सीखा है
ए ज़माने..हमें गिराने की तेरी
हर कोशिश नाकाम होगी
फ़क़ीरी में भी क्या हसीन अमीरी
पैवस्तो-बाँ-कमाल होती हैं
टाट के पयबँदो में भी दोनों जहाँ
की सल्तनत छिपीं होतीं हैं
दरवेशों से उलझना भी बेवक़ूफ़ी
अव्वल दर्जे की होती हैं
जी हाँ पर दरवेशों की इताअत
मग़फ़िरत की सीडी होती हैं
बंदा जो भी झुकाव का क़ायल
मर्तबा उतना बुलंद पाता है
हिना भी तो पत्थर बीच पीस कर
ही रंगों-ख़ुशबू में निखरती है
मिस्कीन-ओ-दरवेशों की दूआएँ
एसे ही तो अर्श को हिलातीं हैं
प्रभु ख़ुद भी नहीं टालता वै दुआएँ
जो अटल बनी फ़क़ीरी लबोँ से..
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