शीर्षक: तलाश
कतरा कतरा खून से, चलने वाला जिस्म
अब भी निभाता, चाहतों की हर एक रस्म
सीमाओं में रख लूं, बांध कर मन से तन
हो नहीं सकता, सोच लेता, यही तो जीवन
बची उम्र रेखाएं, जब भी हथेलियों में दिखती
मायूसी की हल्की लकीरे, चेहरे को स्याह करती
कंपकंपाती देह, सहारों की तलाश में जुट जाती
एक चिंगारी आत्मा से आकर, कुछ समझा जाती
छोड़ दे हर मोह, देह पर न कर अब कोई एतबार
प्रभु के संकेत समझ, हमें तो जाना छोड़ ये संसार
देह से नहीं प्रभु में मन लगा, धर्म की जड़ होती हरी
देर न हो जाये, सहारे की तलाश में, सांसे हो रही भारी
✍️कमल भंसाली