My Spiritual Poem ...!!!
न पोशिदगी में रख
न तू मीजा़न में रख
अपने वजूद को ही तू
सब के दरमियान में रख
उरुज से ही तो हर बशर
बहका इसे ध्यान में रख
उरुज पर रह के भी क़दम
जमीँ की सीमा में ही रख
गुरुर के परहेज़ से ख़ुद को
रब की पनाह-गाह में रख
कमँ ही किरदार की गिज़ा
हैं यह बात भी ध्यान में रख
फ़सले बोता तु हैं फल देता
रब ही हैं ये यक़ीं ज़हनमें रख
मुसाफ़िर है तु चंद बरसों का
यहाँ जान को पुर-सुकुँ में रख
जीते जी कुछ मर्तबा हाँसिल कर
के खुद ही को रब के हुज़ूर में रख
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पोशीदगी = छिपा हूआ;
मिज़ान = तराज़ू; उरूज = बुलंदी;
गिज़ा = खुराक;