My Sorrowful Poem..!!
यारों आज यहाँ कौन ज़िंदा है
ओर कौन अपना चल दिया है..??
आज गिनती की व्याख्या तक भी
जैसे बदलने की नौबत आ गईं हैं
परिभाषित जीदगीं तो थीं कभी,
रोज़िदाँ साँसों की लय ताल पर
पर आज साँसें तक भी है तो हैं
मोहताज-सी कृत्रिम मशीनों की
आज हस्ती किसी बंदे की बचीं
नहीं ओकस्जिन तक ख़ुद लेने की
घर रह कर परिवार की सुरक्षा
पर रोज़ी-रोज़गार की भी है चिंता
करे तो क्या करे,जाएँ तो कहाँ
ख़ौफ़नाक वारदातों के सिलसिले
क़ब्रिस्तानों शमशानों क़तारकी
सीमा से परेशान हैं आज इन्सान
प्रभुजी कभी न देखा न सुना था
तेरा इतना भयानक-ओ-भयंकर रुप
बख्श दे बख्श दे बख्श दे ए प्रभु
हम गुनहगार बंदों की सारी खताएँ
कृपालु पालनहार सर्जनहार तूँ ही
इस फ़ानी बला से बचा तारएहार।
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