दूरियाँ बन गयीं हैं आज मजबूरियाँ ,
नहीं कोई ये इत्तफाक है ,
ये वक़्त का तकाज़ा और जरूरी बात है ,
अब भी नहीं संभले तो बर्बाद हो जायेंगे ,
सूखे पत्ते जैसे कोरोना की आंधी में बिखर जायेंगे ,
आज महफूज रहे तो कल का सहर देखेंगे ,
अपनों के करीब होने का पहर देखेंगे ,
अगर अब भी नजरअंदाज किया तो ,
हमारे हंसीं ख्वाब अधूरे रह जायेंगे .