जिंदगी बचाने के खातिर हर कोई लड़ रहा है।
अपनों की लाशों से ही श्मशान जल रहा है।
हवा जो स्वछंद थी सब के लिए दुनियाँ में।
इत्तेफ़ाक़ आज वही इंसान खोजता फिर रहा है।
कल तलक जो गले मिलकर इज़हार करते थे।
दूरियाँ अब बढ़ गईं हैं वो बच के निकल रहा है।
आत्मनिर्भर बनों, स्वावलंबी बनों किसी ने कहा था
आवाम जवाब चाहती है और वो भागता फिर रहा है।
-Arjun Allahabadi