बंसी की धून पे
थनगनते मेरे पैर
जैसे खिंचता हो मुझे कोई
तेरी ही और
तेरे विचारों में
भूल जाती, दिन ऐ रात
जैसे याद हो मुझे
चांद, सूरज हो बस तुम
देखती हूँ जिधर भी
दिखते हों तुम ही तुम
जैसे मेरे आंखों में
बसें हो तुम ही तुम
चांद बिना रहती है
चांदनी आधी सी
सूरज बिना होती है
साम आधी सी
वैसे ही हम
रहेंगे तेरे बिन आधे से।।
-Vaishali Rathod