एक पड़ाव है जीवन की राह पर जहाँ कदम अनायास ठहर जाते हैं। उस जगह एक सूखा पेड़ है, ढलता सूरज है, बंजर ज़मीन है और पंछियो का शोर नदारद है। वहां से ये नज़र नहीं आता कि तुम कहाँ से चले थे और किस ओर तुम्हारी अगली मंज़िल है। वहां ना भूख लगती है ना प्यास, ना महत्वाकांक्षा अभिभूत करती है और ना सफलता संतुष्ट करती है। बस एक शून्य खींचता है अपनी ओर..... चिरनिद्रा का आश्वासन लिए।
मगर हमें वहां रुकना नहीं है। उस पड़ाव को समझना है और आगे चल देना है। और हाँ, निकलते हुए उन लोगों का हाथ थाम लेना है जो उस शून्य को आखिरी मंजिल समझ बैठे हैं।
-Prateek Dave