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महाभारत के शुरू होने से पहले जब कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास आये तो दुर्योधन ने अपने सैनिकों से उनको बन्दी बनाकर कारागृह में डालने का आदेश दिया। जिस कृष्ण से देवाधिपति इंद्र देव भी हार गए थे। जिनसे युद्ध करने की हिम्मत देव, गंधर्व और यक्ष भी जुटा नहीं पाते थे, उन श्रीकृष्ण को कैद में डालने का साहस दुर्योधन जैसा दु:साहसी व्यक्ति हीं कर सकता था। ये बात सही है कि श्रीकृष्ण की अपरिमित शक्ति के सामने दुर्योधन कहीं नही टिकता फिर भी वो श्रीकृष्ण को कारागृह में डालने की बात सोच सका । ये घटना दुर्योधन के अति दु:साहसी चरित्र को परिलक्षित करती है । कविता के द्वितीय भाग में दुर्योधन के इसी दु:साहसी प्रवृति का चित्रण है। प्रस्तुत है कविता "दुर्योधन कब मिट पाया" का द्वितीय भाग।