देखो जरा,,,,
फिर से वही खौफनाक अहसास दोहराने लगे हैं,,,,
वो बेबसी के मंजर आंखों में आने लगे हैं,,,,
फिर से रोटी को छोड़, साँसो को सम्भालने की कोशिश हो रही,,,,
जिन्दगी को बचाने के लिए वो परदेशी अपने देश जाने लगे हैं,,,,
जख्म सूखे नहीं थे अभी, पैरों के साथ लगे थे जो आत्मा पर गरीब की,,,,
वो मजदूर फिर से निराश और लाचार हो घर अपने वापस जाने लगे हैं!!!!!
-Khushboo bhardwaj "ranu"