यूँ ही चलता रहना जीवन माँ के आँचल में छिपकर ही,,,
यूँ ही खेलते रहते हम,पापा के काँधे पर बैठकर ही,,,
काश ,,
ये बचपन कभी बड़ा होता ही नहीं!!!
ना रहती थी फिक्र कोई जब हमें जमाने की,,,
ना ही थी जल्दी कुछ करने, चार पैसे कमाने की,,,
काश,,
ये जरूरतें जिन्दगीकी कभी बढ़ती ही नहीं!!!
जब गलती हम करते और डाँट भैया खाया करते थे,,,
अपने हिस्से की चॉकलेट, बचाकर ,हमें खिलाया करते थे,,
काश,,
ये रिश्ते कभी समझदारी के दायरे गढ़ते ही नहीं!!!
""khushboo""