Nidhi चल ना कुछ नया करते है
बहोत हो गई दिमाग की मनमानी ,आज दिल की बात सुनते है ।
कुछ अरमानो को बेच , खुद की खुशिया खरीदते है,
अभी थोड़ा सा सम्भल लेते है यार ,फिर बिन रुके बेखोफ चलते है ।
खुद के सपनो को खुद ही बुनने की लिए रिश्तो का धागा बड़ा ही तेज़ चुनते है ,
चल ना बंध कली से खिलकर कर बिंदास महकते है
बहोत दिन हो गए खुदसे मिले हुए,
दिन को बेच खुद के लिए शाम का कुछ वख्त खरीदते है,
चलते चलते रास्ते पे अगर कही मिल जाए तो
इस उलझी हुई जिंदजी से खुद के लिए सुकून के दो पल खरीद ते है
-Nidhi Mehta✒️♥️