My Comedy Poem...!!!
यारों कोरें काग़ज़ पर लिखीं
ग़ज़ल बकरी चबा गई
फिर चचाँ हुआ सारे शहर में
कि बक़री शेर खाँ गई
कला कारीगरीं लफ़्ज़ों कि
सारी बेवजह-सी हो गई
ग़ज़ल भी हाज़मे कि दिवारों से
टकरा के पिंगल-सी गई
शायद शायर भी बेचारा पागल
सोचा बात यें क्या हो गई
कुछ पल में शेर-ओ-कलामकी
मानों जैसे धज्जियाँ उड़ गई
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