शोर
जाने ये कैसा शोर है।
कभी अक्स बनते हैं कभी बिगड़ जाते हैं।
गुमनाम जिंदगी की
डायरी में शेर ग़ज़ल लिखने का दौर है।
ना कोई ठिकाना है और ना कोई ठौर है।
बस जिंदगी के सिरमौर है।
जाने ये कैसा शोर है।
मुफलिसी में जीने का दौर है।
शोर शराबे में महामारी फैलने का दौर है।
सम्भल जाने का दौर है।
नाइट कर्फ्यू भी कहीं लगने का दौर है।
घरों में रहने का दौर है।
सुनो सुनो कोरोना से बच निकलोगे तो जश्ने जिंदगी मनाने का दौर है।
-Anita Sinha