*अंहकार की "आरी"*और*
*"कपट" की कुल्हाड़ी...*
*संबंधों को काट ड़ालती है..*।
*कभी कभार हम*
*सही होने के बावजूद भी ....*
*चुप रहना पड़ता है*।।
*इसलिए नहीं कि हम डरते है...!* बल्कि*
*इसलिए कि...*
*सम्बन्ध हमें बहस से*
*ज्यादा प्यारे होते है।*
#दिपकचिटणीस (DMC)