वो नहीं पहचानते
अरमान भरे नयनों से
बारिश के बूंदों को
बूंद बूंद पीती है नीलांजना,
प्रेम भरे मौसम में
डूब कर गाती है नीलांजना,
तालियों के गड़गड़ाहट से
मंच से सबके हृदय में
उतरती है नीलांजना;
स्वप्निल आंखों से
उकेरती है तस्वीर
अंधेरी रातों में
विरह के गीत गाते हुए
अपने प्रेमी का;
पर्दा गिरता है
और आंखें खुलती है,
विस्मृत होते हैं दृश्य,
और बचता है आबनूसी यथार्थ,
जो नहीं जानता
संगीत को, मंच को,
उच्च शिक्षिता नायिका को,
उसके धवल हृदय को
और कविता को;
दिखता मात्र हैं उन्हें,
बरसती रात सी गीली
श्यामल वर्णी नीलांजना,
जिसकी सौंधी खुशबू
वो नहीं पहचानते।