तुझे मनाते मनाते नजाने कब से हम खुद से ही ख़फ़ा रहने लगे।
तेरा गुस्सा सहते सहते नजाने क्यूं हम खुद पे ही गुस्सा होते है ।
तुझे भरोसा दिलाते दिलाते नजाने कब हमने खुद पर से ही भरोसा खों दिया।
तुझे प्यार करने मे कब हमने खुद से प्यार करना छोड़ दिया ।
हर वक़्त हर लम्हा बस तुझे खुश करने मे लगे रहते है पर क्यूँ हम खुदको खुश करना भूल जाते है ।
तेरे सपने पूरे करने के लिए क्यूँ हम खुद के सपने को जलाते है।
तुझे सुनते हुए हम क्यूँ अपने अंदर की आवाज सुन नहीं पाते ।
शायद इस लिए क्योंकी तुझे जिंदगी जीना तो सीखा दिया मगर खुद जिंदगी जीना भूल गए है ।।
-DrPalak Chandarana