अल्हड़ सौंदर्य क्षणिक पीकर
निर्मल पुष्पों में खोकर मिलूंगा ।
सरसराहट पत्तियां ओढ़कर
बहते झरने में कूदकर मिलूंगा ।
शूल-कंकड़ अत्यादि झेलकर
स्वच्छ हृदय में डूबकर मिलूंगा ।
पेड़-पौधे को साक्षी मानकर
स्नेह-उल्लास में तैरकर मिलूंगा ।
छम-छम पायल को सुनकर
नृत्य में प्रेक्षक बनकर मिलूंगा ।
-© शेखर खराड़ी