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शिव एक भी ,
अनेक भी !
शिव सुगम भी ,
दुर्गम भी !
शिव देह में भिन्न भी ,
अस्तित्व में अभिन्न भी !
शिव आनंद का समुद्र भी
काल सा रुद्र भी !
शिव विष को संभाले कंठ भी
अमृत की मोक्षदायनी गंध भी !
निर्जन के तांडव में एकल भी
मानसरोवर के तट पर
लास्य- नर्तन में युगल भी !
शिव महाकाल की लहरें अपने शीष इन्दु में लपेटे भी ,
विकराल को एक गहन नीरव शान्ति बिंदु में समेटे भी !
सबकी प्रगाढ़ निद्रा में
शिव ही सोता है ,
स्वप्नों में संकल्प बीज बोता है !
उषा के अधरों पर
चिन्मय स्मित-हास सजाता है
मन में प्रतिदिवस
नवजात शिशु सा जागता है, कौतुक जगाता है !
प्रेयसि प्रकृति को
अपने प्रेमार्द्र स्पर्श से
नित्य नवयौवना बनाता है,
हर जन्म में,
जो रह गया अतृप्त
उसे अघाता है.....
: नीलम 💎