वीणा मेरी बहन
मन से बिखरा , तन से टुकड़ा हूँ,
नि:शब्द जिह्वा,बुत सा खड़ा हूँ।
सांसों में सिसकी,आंखों में अश्रु,
सोयी चुप मां को उठा रहा शिशु,
सामने जो जन्मा,सामने जो खेला,
साथ में खाया, कई सपने पिरोया,
आगे निकल गया, कहने को बड़ा हूँ।
ऐसे काले मंज़र से क्यों मैं गुज़रा हूँ।
भाव सारे शून्य ,मनस्थितियां रूग्न ,
विछोह की पीड़ा से किस तरह लड़ा हूँ।
*एक स्तब्ध ममेरा बड़ा भाई की वेदना
-मुक्तेश्वर
-Mukteshwar Prasad Singh