रोज़ ढूंढती रही मैं , ख़ुद से ही उलझती रही मैं,
थोड़े सपने लेकर मैं , वादों को पूरा करने चली थी,
ज़मीं का एक टुकड़ा , आसमां की परछाईं से,
निकल चली मैं , निकल चली मैं,
अपने सपनों को संजोने , ख़ुद से मिलने चली मैं,
मुलाक़ात मुमकिन हुईं , जब ख़ुद से मिली ख़ुद मैं
_Kridha