" हाथ मेरा थाम लो "
बीच मझधार में छोड़ कर ना जाओ मेरे यार तुम,
हाथ मेरा थाम लो जीवन साथी बना कर मुझे तुम।
बहुत हसीन से ख्वाब सजाए थे मैंने कई,
ना तोड़ कर जाओ तुम हाथ मेरा छोड़ कर।
थे हसीन लम्हे गुजरे हुए वक्त के जहन में कई,
उन लम्हों को फिर जिंदा कर लो हाथ मेरा राम कर।
जीना अब आसान नहीं और मरना दुश्वार हुआ,
जिस्म छोड़ दूं मैं, मगर रूह भटके तेरी चाह में।
जीवन मेरा ना सवारों, कोई बात नहीं पर,
मौत मेरा सवार लो, एक बार हाथ मेरा थाम कर।
है यह बातें सिर्फ शेखचिल्ली की, नहीं है कुछ भी सच,
विषय मिला "मित्र" को सुनाया तराना झूठा मगर संगीन।
-मनिष कुमार मित्र"