कवि की कल्पना
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असीमित उड़ान ही तो
कवि की कल्पनाओं में
परवान चढ़ता है,
अकल्पनीय, अकथनीय
कल्पनाओं का संसार ही तो
कवि की कल्पना है।
खुद कवि भी नहीं समझ पाता
अपने कल्पनाओं की उड़ान को,
खुद भी चकित रह जाता है
देख अपने सृजन संसार को।
कवि की कल्पनाएं असीमित है
असमय ही उड़ान भरती हैं,
कल्पनाओं में ही तो वो
नित नये सृजन करती हैं।
न बँध सकती है कल्पनाएँ
किसी भी परिधि में,
कवि की कल्पनाएँ ही
दिखती हैं नव सृजनपथ में।
#सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
811528285921
©मौलिक, स्वरचित