साँस देह में चल रही.....
साँस देह में चल रही, ईश्वर की सौगात ।
साँस रुकी माटी हुआ, यह तन है खैरात।।
जाने का दुख क्यों करें, हमको है आभास।
कर्म सभी अच्छे करें, फिर क्यों रहें उदास।।
रिश्ते-नातों से बने, आपस में पहचान।
प्रेम भाव से सब जुड़े, मिला मान सम्मान।।
आना जाना है लगा, सबने जाना मर्म।
रोना धोना व्यर्थ है, करो सदा सत्कर्म।।
प्रभु ने भेजा जगत में, करने को कुछ काम।
मिलजुलकर पूरा करें, जग में होगा नाम।।
हों कृतज्ञ माँ बाप के, पाला है कुछ सोच।
तब उनकी उस सोच को, क्यों आने दें लोच ।।
पीढ़ी दर पीढ़ी चली, यह लेकर संदेश।
मानव हो, मानव रहें, धर मानव का वेश।
लोकतंत्र अवधारणा, यह भारत है देश।
धर्म जात मजहब सभी, सुंदर है परिवेश।।
मानवता की सोच से, सुद्दृढ़ बनता देश।
कभी आँच आती नहीं, कभी न आते क्लेश।।
हम सब हैं इस जगत के, राहगीर अनजान।
कब चल दें जग छोड़ कर, जा पहुँचे श्मशान ।।
आशाओं से जग बंँधा, भटक गये तो मौत।
उठो गर्व से चल पड़ो, फेंक निकालो सौत।। 11
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "