_*ज़िंदगी..*_
*जब देखा खुद को आइने में,*
*थोड़ा घबरा गए थे हम !*
*और फिर जब बन-ठन गए ,*
*खुद ही इतरा गए थे हम !*
*चेहरे की त्वचा ,*
*थोड़ी ढीली हुई तो क्या!*
*उम्र भी थोड़ी बढ़ गई तो क्या!*
*बाल सफ़ेद अब आने लगे हैं !*
*कलर है न! लगा के,*
*हम फिर से इतराने लगे हैं !*
*यह भी इक पड़ाव है ज़िंदगी का,*
*हम सब के मध्य आएगा !*
*बचपन आया ,जवानी आई ,*
*तो क्या बुढ़ापा न आएगा ?*
*समय का,*
*बस आप मज़ा लीजिए,*
*क्या कुछ छूट गया ,*
*परवाह न कीजिए !*
*जो है, उसे जी भर कर जिएं,*
*लुत्फ़ ज़िंदगी का उठा लीजिये !*
*आधी से ज्यादा कट गई है ,*
*न जाने कितने पल बचें है,*
*यह सब सोचकर,*
*न घबराया कीजिए !*
*ज़िंदगी है तो !*
*उसे ज़िंदगी की तरह ही,*
*जिया कीजिए...*
*मजे ज़िंदगी के लिया कीजिए*
-Sanjay Singh