हिमाचल में दिसंबर
दिन छोटे, लंबी रातें
लाए बाबा बर्फानी
ओढ दुशाला बैठा सूरज
करता अपनी मनमानी।
नज़र जहां तक जाती अपनी
चांदी ही चांदी पसरी है
कोहरे की चादर के पीछे
सूरज की किरणें ठहरी है
जाङ़े के दिन पूछ रहे
आये कितने सैलानी
दिन छोटे,लंबी रातें
लाये बाबा बर्फानी।
कांप रही है थरथर नदियां
कुल्फी जैसे झरने सारे
किट किट,किट किट बजा दिसंबर
दिखा रहा है दिन में तारे
स्वेटर,शॉल, रजाईयां
करती है बेईमानी
दिन छोटे, लंबी रातें
लाए बाबा बर्फानी।
आग तापकर बतियाते सब
जीवन है संकट में भाई
हाथ पांव में खून जमा है
सांसें भी लगती शरमाई
पेङ़ चीङ के झेल रहे
कैसे हवा ये तुफानी
दिन छोटे, लंबी रातें
लाए बाबा बर्फानी।
मक्की की रोटी पर मक्खन
सरसों वाला साग बनाओ
तिल के लड्डू,गजक,रेवङ़ी
मूंगफली से दिल बहलाओ
गरम-गरम कहवा पीकर
खुलती है सबकी बानी
दिन छोटे, लंबी रातें
लाए बाबा बर्फानी।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत