पश्मीना और तबस्सुम
कुछ खो सा गया है न जाने कहाँ
शरारतों का बचपन अब मिलता नहीं
परत सी कोई जम गई है दुंधली सी शायद
एहसासों का पश्मीना भी बेअसर हो गया है
तबस्सुम जो चेहरे की रौनक हुआ करती थी कभी
आज गुमशुदा सी न जाने कहाँ है।।
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