ज्ञान घटता नहीं
बढ़ता ही जाता है।
बंटाते रहो पीढ़ी दर पीढ़ी
तो ज्ञान का अथाह सागर बन जाता है।
ध्यान रहे बस इतना की,
ज्ञान पाने को शीश झुकाना होता है,
खड़े रहे जो तनकर तो ज्ञान भी आधा होता है।
अभिमान और ज्ञान कभी साथ नहीं रहे सकते हैं,
यूं ही नहीं बड़े -बड़े ज्ञानी भी शीश नवाये रहेतें हैं।
जो जितना विनम्र हो जाता है,
उसका उतना ही ज्ञान बढ़ता जाता है।
दिन ब दिन साल दर साल,
ज्ञान घटता नहीं कभी है,
बस बढ़ता ही जाता है।
निर्भर है ज्ञानार्थी पर,
कौन कितना ग्रहण कर पाता है... ।
Pratima Pandey