बाते तो करती है बडी बडी मगर,
तारीफे वो, खुद की ही सूनते है,,
रिश्तेदारी हो या कारोबरी,
मूनाफा ही वो चुनते है,,
अपना-पराया कुछ न दिखता,
खुदगर्जी पर रिश्ते यहां बनते हैं,,
स्वार्थ साधा,अपना हुआ पराया,
मिनटों में सदीयो के रिश्ते यहां बिगडते हैं,,
भावनाओ का हुआ कबाडा,
रिश्तो की ट्रेन,परिवार की पटरी पर से फिसल रही,,
परिवार टुटेगा तो घर भी बिखरेगा,
रिश्तेदारी फिलहाल स्वार्थ में ही घुसल रही!...
-प्रिया...