नन्ही-सी कली मेरी;मखमली-सी काया तेरी,
चाहे मन तेरा है कोमल;पर तन-से तू कमज़ोर नहीं...
लोगों की क्या है सोच; मालूम नहीं,
पर मुझ पर तू बोझ नहीं...
शब्दों-से तू कोमल और मृदु तेरा स्वभाव;
पर पहन लेना कठोरता का शस्त्र;
अगर आहित, हो तेरा स्वाभिमान...
गलत-स्पर्श जो छीन ले तेरा हर्ष;
तो कोमल हाथों-से, देना करारा जवाब;
चाहे करना पड़े दुनिया से संघर्ष...
अग्निपरीक्षा की आग में जो झुलसे; तेरी कोमल काया,
तो तू भी देहका देना उनको; बन तेजस्वी ज्वाला...
कोमल-सी समझ खुद को, मुरझाने ना देना;
फूल संग कांटे होते हैं; सब को दिखला देना...
-मंजरी शर्मा