मेरी ओर से सादर प्रस्तुत हैं कुछ दोहे। अवलोकनार्थ एवं समीक्षार्थ 🙏🙏
हीरे मोती व्यर्थ हैं, रखे दिलों में नेह।
प्रेम भाव से सब रहें, सुंदर होता गेह।।
मन में श्रद्धा को रखें, जैसे मोती सीप।
मंदिर में आलोक हो, ज्यों जलते हैं दीप।।
तन रूपी इस सीप में, सदा बिराजे राम।
कृपा सिंधु भगवान हैं, श्रृद्धा से लें नाम।।
सबके दिल में बस रहे,ईश्वर का यह धाम।
जो भी उसे पुकारता, बनते बिगड़े काम।।
सबकी नैया के सुनो, ईश्वर खेवनहार।
दूर-भंँवर से ले चलें, नैया करते पार ।।
कितनी नदियाँ रेत में, हुईं विलोपित आज।
सूख गए सब खेत हैं,तृषित विहग-परवाज।
केवट खड़ा निहारता, कब आएंँगे राम ।
संकट में परिवार है, बिन मजदूरी काम।।
नदियों पर पुल बन रहे, केवट खड़ा उदास।
अब प्रभु पुल से जा रहे, व्यर्थ लगी है आस।।
चारों ओर सुगंध से, महक उठी है शाम।
प्रिय का है शुभ आगमन,आज मिलेंगे श्याम।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
-Manoj kumar shukla