एक मंजर तेरा ही होगा ए जिंदगी, जहा
किसी के साथ एक वक्त जीना भी होगा।
महफूज रखा मेरे किरदार को जिसने अपने दिल में,
काश चले एक कदम मेरे साथ ऐसा लम्हा चुना भी होगा।
ए जिंदगी..!
तू वही ठहर गई जहा मेरे जज्बात को आशियाना मिला,
वरना इस सफ़र में हमसफ़र कोई दीवाना मेरा भी होगा।
ठोकर तो खाई है क़दम क़दम पर हमनें इस मोड़ पर,
पर मंज़िल हमे ख़ुद बुलाए, कोई सहारा ऐसा भी होगा।
हर किसीकी चाहत तो होगी शोहरत पाने की,
पर आसमाँ को कभी जमीं से मिलना भी होगा।
मैं ' राही ' इस जिंदगी के बीच सागर के लहरों की,
जरूर मेरी कश्ती का कोई किनारा भी होगा।
- परमार रोहिणी " राही "