ट्रेन की यात्रा
अपनी अर्धांगनी के साथ
सतना स्टेशन का प्लेटफॉर्म
ट्रेन की प्रतिक्षा में आँखें
तीन घण्टे लेट है ट्रेन पत्नी ने कहा
सुनकर चौका था मैं।
ठंड से चमड़ी सिकुड़ रही थी
फिर एक आवाज गूंजी
की ट्रेन अभी एक घण्टे और लेट
कई बार स्टेशन के फेरे लिया
मिलकर पी गए 20 कप चाय
कई तफ़ा दोनों ने चटकाई अंगुलियाँ
चाट गया मैं दो उपन्यास
उड़ाते उड़ाते सिगरेट का धुआँ
उसने चाटी दो मनोहर कहानियाँ।
फिर वो खर्राटे मार कर सो गई
मैं देखता रहा नई नवेली दुल्हन
जो बगल में लेटी थी
उसका मर्द भी खर्राटे ले रहा था
पीली किनारे की धारी वाली उसकी वो साड़ी
उसके देह की कांति को दुगना कर रही थी
उसके घूँघट से झाँकती उसकी
गहरी नीली आँखें
वह अद्भुत नजारा था
अब ट्रेन देरी से आने का एहसास भी
जेहन से छूमंतर हो गया था।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'