•ख़ामोशीया
कुछ शोर हैं शेर-ओ-शायरी में हर ग़ज़ल का मतला रोता क्यूँ हैं..?
अरे बाकायदा तुम तो जाँ हों मिसरे की मौत से पहले सोता क्यूँ है..!
रात की गिरफ्त में क़ैद जज़्बात हैं ज़ाहिर कुछ नहीं होता क्यूँ है..?
एक समंदर जो आँखों में भरा पड़ा हैं दिल से फिर समजोता क्यूँ हैं..!
दौर-ए-शिकस्त की गज़ले क्या सुनाई शहरभर में सन्नाटा क्यूँ हैं..?
तुम तो छोड़कर चले गये अय हमसफ़र दिल-ए-आग बुजाता क्यूँ हैं..!
वो ख़्वाब जो अब कभी पूरे ना होंगे उसमें ख़ुदको खोता क्यूँ हैं..?
जज़्बात पन्नों पर रातभर सुखाकर ख़ामोश चीखता-चिल्लाता क्यूँ हैं..!
मैखाना हैं तो फिर यहाँ शराब ही मिलेगी मौत को गले लगाता क्यूँ हैं..!
मोहब्बत__मोहब्बत हैं "काफ़िया" हरकिसीको गज़ले सुनाता क्यूँ हैं..?
#TheUntoldकाफ़िया
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