"गुपकार" संगठन पर मेरी एक सजल सादर प्रस्तुत है 🙏🙏🙏
हम बेबस ही फँसे हुए हैं,
कितने सपने धुँये हुए हैं।
हम मुफलिसी हटाना चाहें,
कुछ धूनी में रमे हुए हैं ।
जग आतुर नभ में जाने को,
कुछ झुरमुट में घिरे हुए हैं।
हम सद्भाव जगाना चाहें,
कुछ स्वार्थों में धँसे हुए हैं।
हम सबको हैं शीश झुकाते,
कुछ अकड़े ही खड़े हुए हैं।
हम जीवन का मोल समझते,
कुछ मानव बम तने हुए हैं।
संसद भी समझाकर हारा,
कुछ नासमझी अड़े हुए हैं।
हम सरहद की करें हिफाजत,
कुछ आतंकी बने हुए हैं।
यह कैसा गुपकार संगठन,
शत्रु देश से मिले हुए हैं।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "