क्यों उछाले नाग काले
होश खोती बस्तियों में
ये हवाएँ सर्पदंशी लग रही हैं
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
गाँव लेते हैं उबासी, शहर सोते
चार ओझा घूमते हैं ज़हर बोते
व्यर्थ सब सम्वेदना है
वर्जनाएँ लोकध्वंशी लग रही है
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
तोड़ते बच्चे खिलौने, साँप बुनते
ये न बुलबुल, कोकिलों के गीत सुनते
कहर ढाया बस्तियों में
नीतियाँ नित नागवंशी लग रही हैं
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
लोक विषपायी स्वयं में खो गए हैं
सब पड़ोसी नीलकंठी हो गए हैं
राख होती बस्तियाँ हैं
आँख में मणिकर्णिका सुलग रही है
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
रिंकू चटर्जी #गीतांजलि
(कलम से क्राँति तक) संकलन