में यादो का किस्सा खोलू तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते है।....
में गुजरे पलो को सोचु तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते है।....
अब जाने कौन सी नगरी में,
आबाद है जाकर मुदत से,
में देर रात तक जागूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते है।...
कुछ बाते थी फूलो जैसी,
कुछ लहज़े खुशबू जैसे थे,
में शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते है।...
सबकी ज़िन्दगी बदल गई,
एक नए सिरे में ढल गई,
किसी को पढ़ाई से फुरसत नही,
किसी को नौकरी से फुरसत नही,
किसी को दोस्ती की जरूरत नही।...
सारे यार गुम हो गए है,
"तु" से "तुम" और "आप" हो गए है।....
में गुजरे पलो को सोचु तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते है।....
क्या कहु जनाब-ए-ज़ादे
खुद को खोलू तो
कुछ दोस्त बहोत याद आते है
माना मंजिल उनकी थी
मगर दोस्त तो थे न हम उनके
जरा-सा खोफ ही लगा था
यू छोड़ने को कहा बोला था
अब वो ही टूटे लम्हे साजोंना है
कुछ दोस्त बहुत याद आते है..
बताना भी जरूरी है
क्या करे अब तुम जानने को तैयार न हुए.
मेरे सारे वो किस्से मुजे वापस लौटा दे
फिर हक है तुजे मुझसे दूर जाने में
चल, कर ये दास्तान फिर इज़ाज़त है
है मंजूर तो हक है तुजे तुझमे busy हो जाने का
मुजे तो अक्सर वो लम्हे याद आते है
मुजे कुछ दोस्त बहोत याद आते है...😊
-chetna suthar.