अनकहे एहसास...⊙
कुछ यूँ ही अपने-अपने से... लगते हो तुम...
अक्सर #मुझ_ही_से ... जुड़े से लगते हो तुम ।
अन्जान हो लेकिन... फ़िर भी अपनों में हो…
जैसे अब भी हम... किसी पुराने रिश्ते में हों ।
किसी जन्म के बहुत... क़रीबी लगते हो तुम...
किस रिश्ते से क़रीब थे... ये मालूम न था मगर...
क्या बनकर मेरी जिंदगी में... #शामिल_हुए_हो_तुम ...
इल्म नहीं था किसी बात का भी... मुझे अब तक...
और क्या बनकर लौटोगे... कोई एहसास भी नहीं…
कितने मुख़्तलिफ़ हो... सबसे कितने अलहदा हो तुम...
फिर भी मुझको बस... अपने ही से लगते हो तुम ।
आँखें निहारूँ तो चाहतों का... सागर समाएँ बैठे हैं हम...
अलग होकर भी कुछ यूँही... साथ आज़माएँ बैठे हैं हम...
जितना की दूर हैं तुमसे के... उतना ही निभाएँ बैठे हैं हम...
कमाल की बात ये है इक-दूसरे को... मिटाएँ बैठे हैं हम ॥
कुछ यूँ ही अपने-अपने से... लगते हो तुम...
अक्सर मुझ ही से... जुड़े से #लगते_हो_तुम ॥